Ajay

Add To collaction

जुस्तजू भाग --- 13

रूठे रूठे पिया.... मनाऊं कैसे ? ( फिल्मी गीत की पंक्तियां)


मम्मी जी के जाते ही उसे अहसास हुआ कि उसने क्या सौंप दिया है मम्मी जी को। ऐसा कैसे कर गई वो ??
 पर अब वापस लौटने का उपाय न था और उनके सामने बोलने की हिम्मत तो किसी में नहीं थी। पर मुंबई...!!!! कैसे रहेगी वह अपने बच्चे के बिना....?? फिर इतनी दूर..... !! माना कि मां के साथ ईशान उसके बगैर भी रह लेता था और मां को मम्मीजी अपने साथ ले जा रही थी।
 तभी उसे अनुपम याद आया। उसे तो अपने बच्चे के साथ कुछ पल ही बिताने को मिले थे और उसने अनुपम से पूछा भी नहीं।

 विचारों में उलझी कब वह मम्मीजी के पास चली आई उसे जब समझ आया जब उन्होंने उसे बैठने के लिए कहा। ईशान मम्मीजी के साथ खिलखिला रहा था और वे अपनी सारी गंभीरता छोड़े बस उसी में मगन थी। ऐसा लग रहा था कि उसने वहां पहुंचकर एलियन जैसा काम कर दिया है।

"बहन जी अब इसे सुला लीजिए। ज्यादा हंसेगा तो फिर परेशान भी उतना ही करेगा।" उन्होंने मां से कहा।

"मम्मीजी आपकी फ्लाइट कब की है ?"

"कल 3 बजे निकलना है सुबह, इलाहाबाद (प्रयागराज) के लिए।"

"यह आपको परेशान कर देगा न !! आप अपना बिजनेस संभालेंगी तो आपको परेशानी होगी न !"

बिल्कुल नहीं। तुमने अपनी प्रायोरिटी तय की है, अनुपम ने भी। पर मुझे मेरी प्रायोरिटी तय करने दो।"

वह लाजवाब थी। "आपकी तैयारियों में मदद कर देती हूं।"

"सब हो गई है। बस 3 साल है तुम्हारे। जब तक मुंबई में तुम्हारा खुद का हॉस्पिटल होगा। अब वहीं रहोगी तुम भी।"

"लो !! यहां तो सब उल्टा ही हो रहा है !!!" वह मन में ही बोली।

"जाओ तुम अपना देख लो। तुम्हें भी कल निकलना होगा लखनऊ के लिए।"

वह बेबस सी चली आई।

"बुआ .. न...न....मम्मीजी हमेशा अपने अनुसार सबकी जिंदगी तय करती आ रही है। अब तो इनको वीटो मिल गया है न।" वह मन ही मन में अपने फैसले को कोसती खुद की तैयारियों में जुट गई।

"तकलीफ हो रही होगी न अपने बच्चे से अलग होने की" तभी मम्मीजी कमरे में आई।

वह चुप थी।

"इधर आओ, मेरे पास।"उन्होंने उसे बैड पर बुला लिया।
वह चली गई चुप सी।

"अपनी मम्मी पर भरोसा करो। मैं कुछ भी गलत नहीं होने दूंगी। उन्होंने उसे गले से लगा लिया। वह सुबक पड़ी। वे उसे उसी तरह चिपकाए थी जब तक कि वह फिर से सो नहीं गई।

आज उनकी यादों का कारवां चल पड़ा था।
उनका ननिहाल था प्रतापगढ़ !! वहां 2 ठाकुर परिवार ही थे। आरूषि के पिता का परिवार धौलपुर से कभी वहां आ बसा था। उनकी मां 3 पीढ़ियों में जन्मी अकेली लडकी थी इसलिये न केवल अपने परिवार बल्कि उनके पूरे ठिकाने की लाडली थी।

 उनका विवाह राजस्थान के राजपूत परिवार में उदयपुर हुआ था। इसी कारण वे भी अपने ननिहाल में सबकी लाडली थी। ननिहाल में ही उनकी परवरिश हुई थी। आरूषि के पिता उनसे 2 वर्ष ही बड़े थे। पर उनका ध्यान सगे रिश्ते से बढ़कर रखते थे। दोनों को देखकर अक्सर लोगों को सगे भाई बहिन का सा भ्रम हो जाता था। जब उन्होंने इंजीनियरिंग पढ़ना चुना तो केवल वे ही थे जिन्होंने न केवल ननिहाल बल्कि उनके पिता से भी उन्हें इजाज़त दिलवाई थी बल्कि उन्हें जेईई पार करने में गाइड भी किया और सीनियर होने के कारण बॉम्बे आईआईटी में ध्यान भी रखा।
  अब उनका अपने पिता के घर से जुड़ाव ज्यादा हो गया था।पिता के घर से उनकी एक सहेली बन गई थी जो बहुत सीधी थी पर बहुत खूबसूरत और पढ़ने में उनकी ही तरह। दोनों बहिनों की तरह ही थी जैसे। आरूषि के पिता को उनके यहां आते जाते कब उनसे प्यार हुआ और कब उन्होंने अपने घरवालों से बात कर रिश्ता तय कर लिया। जब उन्हे पता चला तो वे बेहद खुश थी आखिर सहेलियां अब रिश्ते में जुड़ने वाली थी। पर उनकी मां इस रिश्ते के खिलाफ़ थी। मां से उन्हें पता चला कि आरूषि के परिवार में लड़कियों को जन्म देना अभिशाप माना जाता था इसलिए उनके परिवार में लड़कियां थी ही नहीं। यह जानने पर उन्हें आरूषि के परिवार से घृणा हो गई। इसके चलते उन्होंने आरूषि के पिता से भी दूरियां बना ली थी। पर तब तक देर हो चुकी थी। अब उनका मन ही नहीं होता था अपने भाई से बात करने का। रही सही कसर आरूषि की मां के गृहिणी बनने के निर्णय ने पूरी कर दी। इसका दोषी भी उन्होंने आरूषि के पिता को ही माना।
    अब उन्हें अपने समाज की रूढ़ियों से भी चिढ़ हो गई थी। वहीं पढ़ते समय अनुपम के पिता से उन्हें प्यार हुआ और अपने समाज से बाहर जाकर उन्होंने शादी भी की। अनुपम के पिता कायस्थ परिवार से थे। प्यार, इज़हार और शादी के बाद भी घर पर उनका निर्णय ही चला। समय बीता जा रहा था कि अनुपम उनकी गोद में आ गया। तभी अनुपम के पिता का बैंगलोर से जयपुर ट्रांसफर हुआ। आरूषि के पिता भी उसी दौरान जयपुर पोस्टेड हो गए। उन्हें मालूम नहीं था कि उनकी सहेली और अनुपम के पिता अच्छे मित्र थे। 
   आरूषि के जन्म के समय अचानक कॉम्प्लिकेशंस होने से आरूषि की मां की जिंदगी खतरे में आ गई थी और आरूषि के पिता बाहर थे। उनके पास जैसे ही अपनी सहेली की हालत का फ़ोन आया वे सब भूल गई और ले पहुंची अपनी सहेली को हॉस्पिटल !! आरूषि उनकी गोद में ही दी गई थी। अनुपम के पिता ने उस समय ख़ून भी दिया। उन्होंने अनुपम के पिता को मजबूर किया कि वे आरूषि को उसके पिता से मांग ले क्योंकि वे आरूषि को भी उस कुप्रथा का शिकार होते नहीं देखना चाहती थी। पर आरूषि के पिता !! वे भी तो बेहद नाराज़ थे अपने परिवार की कुप्रथा से !! आरूषि के पिता ने उनसे आरूषि को लेते समय ही आरूषि के अलावा और किसी बच्चे की चाहत न रखने का वचन उन्हें दे दिया। इसके चलते उन्होंने अपने परिवार से रिश्ते भी ख़त्म कर दिए।

आरूषि उनके लिए उनकी अपनी बेटी ही थी। अनुपम के जन्म के बाद उनकी ओवरी में कैंसर के कारण ऑपरेशन के बाद वह फिर मां बनने में असमर्थ थी। उनकी बेटी की चाहत आरूषि के माध्यम से पूरी हो गई थी। और आरूषि !!! वह जैसे जैसे बड़ी होती गई वैसे वैसे अपनी मां से ज्यादा उनसे जुड़ गई। पर उनका अपने भाई से उनका अबोला चलता रहा।
  पर अनुपम के पिता और आरूषि की मां !! वह दोनों तो आरुषि से नया रिश्ता बना बैठे थे। उन्होंने उनसे आरूषि का जुड़ाव देखकर अनुपम और आरूषि को बड़े होने पर हमेशा साथ रखने का निर्णय कर लिया था। दोनों को एक ही स्कूल में एडमिशन दिलाया गया था। एसएमएस हाई स्कूल।
  आरूषि में भी उन्हें अपनी ही झलक दिखती थी। वैसे ही साहसी, पढ़ाई खेल और लड़ाई में तेज़!! अनुपम अपने पिता पर ही गया था। चुप रहने और पढ़ाई में ही दिल रखने वाला। इसी कारण अक्सर वह स्कूल में अपने हक़ के लिए बोलता नहीं था। और आरूषि ही उसकी लड़ाई लड़ लेती थी। दोनों ही आरूषि के उनसे जुड़ाव के चलते उनके पास ही रहते थे। अनुपम गणित पढ़ने में आरूषि की मदद कर देता था।
  दोनों में कभी अबोला होता तो उनकी जान मुश्किल में पड़ जाती। दोनों के इस प्यार के चलते उन्होंने अपने बिसनेस के सपने को फिलहाल छोड़ दिया था। आरूषि अपने पिता के कारण उन्हें बुआ मां बुलाने लगी थी।

पर समय की नज़र इस रिश्ते को लग गई थी। अनुपम के आईआईटी में सलेक्ट होकर जाने के बाद अनुपम के पिता दिल्ली आ गए थे। उधर 6 माह बाद ही आरूषि अपने माता पिता के साथ कश्मीर गई और वहीं दुर्घटना में आरूषि की मां चल बसी। आरूषि के पिता बेहद गम्भीर थे। उनके पास जब फ़ोन पहुंचा तो वैसे ही वे जम्मू चली गई। आरूषि के पिता जैसे उनका ही इन्तजार कर रहे थे। उनको आरूषि  और अपनी सारी संपत्ति की कस्टडी सौंपकर वे भी उनकी मां के पास चले गए। डॉक्टर्स ने आरूषि के दुर्घटना में पिछली सब यादें भूल जाने और याद दिलाने का प्रयास करने पर जान के खतरे की बात कही। आरूषि के माता पिता का दाह संस्कार करवाने के बाद जब दिल्ली लौटी तो आरुषि के परिवार के लोग उनसे आरूषि की संपत्ति के लालच का इल्ज़ाम लगाने आ पहुंचे थे। आखिर उन्होंने आरूषि को इस सबसे अलग रखने का निर्णय लिया और उसे बोर्डिंग में एडमिशन करवा दिया।
 पर अनुपम के पिता भी कुछ समय बाद स्वर्गवासी हो गए। इन 3 हादसों ने उन्हें तोड़ दिया था पर उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया। उनके पीहर और ससुराल के परिवार के लोग भी उनकी शादी के बाद उनका साथ छोड़ चुके थे। वे अकेली संघर्ष यात्रा पर निकल पड़ी। 
   पर परीक्षा तो बाकी थी जैसे। तभी 3 साल पहले अचानक अनुपम उनसे उदयपुर मिलने आते समय दुर्घटना में कोमा में चला गया और जब वह होश में आया तो आरूषि गुम थी। आरूषि और अनुपम की अतरंगी शादी का पता चलने पर उन्होंने उसे ढूंढा पर उसे तो कल ही मिलना लिखा था जैसे। वह उससे पूरी तरह प्यार भी नहीं कर पाई थी कि जाना था उन्हें तो दोनों की परछाईं साथ ले जा रही थी अपने।

अनुपम अपनी मां के जाने के समय लौटा था 2 बजे। धीरे से उन्होंने आरूषि को अपनें से दूर सुलाया और अनुपम के बुलाने पर बाहर चली आई।

"उसे कोई तकलीफ़ या तुमसे शिकायत नही होनी चाहिए।"

"मम्मी..." अनुपम हैरान था अपनी मां के व्यवहार से। उन्हें तो उसकी ज्यादा चिंता होनी चाहिए थी। आखिर आरूषि ने बिना सब जाने उसे दोषी माना था और जब सब पता चला तो उसने उसका बेटा भी उससे बिना सहमति लिए उन्हें सौंप दिया था। वह आरूषि से नाराज़ था।

"अपने बेटे को मुझे सौंप देने के कारण नाराज़ हो पर भले ही उसे पिछला कुछ याद न हो। मुझे और तुम्हें सब याद है न !! "
"लो अब अंतर्यामी भी हो गई यें, बस बचपन से आरूषि के आगे भूल जाती हैं सब। मुझे लगता है कि मुझे गोद लिया होगा।" वह नाराज़गी में मन में सोच रहा था।

"तुम पर ज्यादा हक है मेरा, इसलिए ईशान को ले जाने के लिए तुमसे नहीं पूछा। अब ज़रा बताओगे कैसे तुम दोनों उसका खयाल रख पाते !!"

बात सच भी थी। ईशान को अपने परिवार की जरूरत थी अब। 

"पर मम्मी आपका बिज़नेस....."

"मैंने अपने बिजनेस को घर से संभालने की क्षमता कर रखी है। आरूषि बस 3 साल के लिए ही दूर रहेगी मुझसे।अगर तुम भी साथ रहना चाहते हो तो आ जाना और हां, यह मेरे लिए भारत आने का अहसान छोड़ दो। क्योंकि अभी भी मुझसे उतनी ही दूर हो।" उसकी बात काटकर उसके दिमाग़ के वहम को साफ कर दिया था उन्होंने। ऐसे ही नहीं उनका अधिकार चल रहा था घर पर।

उनको विदा कर अनुपम अंदर चला आया और आरूषि के कमरे में जा पहुंचा।

सोते हुए हल्की भूरी आंखों वाली परी सी खूबसूरत राजकुमारी लग रही थी वह !!!  उसका मन उसके प्यार में डूब पाता कि उसके दिमाग़ के अहंकार ने आरूषि को उसके बच्चे से दूर रखने का दोषी बना दिया। वह जाने को मुड़ा ही था कि आरूषि की नींद खुल गई।

आरूषि को सब याद आया तो उसे मम्मीजी के जाने का समय होने की याद आई। उसकी तलाशती आंखे और अपनी मां की चेतावनी ने अनुपम को मजबूर कर दिया।

"मम्मी मुंबई चली गई है ईशान और मां को लेकर।" उसने रूखे स्वर में कहा।

आरूषि की आंखे एक बार नम हो आई आख़िर जाते समय अपने बच्चे को प्यार भी नहीं दे पाई थी वह। पर यह भी समझ गई कि उसे जाते देखना बहुत मुश्किल होता। "इसलिए मम्मीजी मुझे सुला गई थी।" वह मन में सोच कर बोली

"आप कब आए ?"

अनुपम बिना जवाब दिए बाहर चला गया। उसने प्यून से बुलाकर पूछा तो अनुपम के अभी आने और उसके आते ही मां के जाने का पता लगा।

"उन्होंने कुछ खाया था ?" उसने अनुपम के पीए से फ़ोन पर पूछा।

"साहब बाहर कभी कुछ नहीं खाते हैं मैडम।"

उसने जल्दी से रसोई में तलाश की। तुरंत खाना बनाया और परोसकर अनुपम के कमरे में चली आई।

"प्लीज़ कुछ..."

"मेरी कब से चिंता होने लगी ?" अनुपम की टोन नहीं बदली थी।
उसकी आंखें फिर भर आई। थाली रखकर वह मुड़ी कि आंसुओं के कारण ठीक से दिखा नहीं उसे और उसे ठोकर लगी।

"देखकर नहीं चल सकती न ! पैर दिखाओ मुझे।" अनुपम आवाज़ से चौंककर मुड़ा और आरूषि के लगने से अपनी सारी नाराज़गी भूल गया।

"छोड़िए मुझे"रुलाई रोकने के कारण आरूषि की आवाज़ कांप रही थी।

अनुपम उसके विरोध को नज़र अंदाज़ कर उसे गोद में उठा लाया और बिस्तर पर लिटा दिया। 

" हिलना नहीं, मैं दवा ला रहा हूं।"

"नहीं चाहिए आपकी परवाह।"

पर अनुपम नहीं माना। अंगूठे पर चोट पर ड्रेसिंग की उसने ....
"किसी ने कहा था कि खाना लाना जरूरी है ? फिर चोट लग गई तो रुकना था न !!"

अनुपम की आंखों में उसकी परवाह साफ़ झलक रही थी। आरूषि की रुलाई फूट पड़ी। अनुपम घबरा गया।

"ज्यादा दर्द हो रहा है क्या ? डॉक्टर बुलाऊं ?"

"आपको क्या....."आरूषि भी नाराज़ हो गई थी। उसके आंखों में भरे आंसू टपक रहे थे। अनुपम को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।

"आरू...."

"मर गई आरू..."

अनुपम ने उसे अपने पास खींच लिया। वह उसके दर्द का अंदाजा लगा चुका था। आखिर रिश्ते बिछड़ने का दर्द वह आज भी सह रही थी।

"नहीं चाहिए आपकी परवाह ! मुझे नहीं रहना यहां.., नहीं चाहिए और पढ़ाई.... मैं मुंबई चली जाऊंगी मम्मीजी के पास।....पहले भी आपसे दूर जी रही थी अब भी जी लूंगी।.... एक तो खाना बनाकर लाई और आपने मुझे झटक दिया। ...….अब भूखे सोना ही है आपको तो मेरे साथ रहने का क्या फ़ायदा ?? .... आरूषि का गुस्सा निकल रहा था।

"बेटा, लग गई लंका..!! और ले पंगा...!!"अनुपम मन ही मन बोला "अब मनाना पड़ेगा और कहीं मां को पता लग गया तो तेरी खैर नहीं। सब कलक्टरी धरी रह जाएगी अगर वे आ गई तो... याद कर मां की पिटाई... तब तो इसका एक खिलौना ही टूटा था और अब तो इसे रुलाया है तूने... !! "



वहां से गुजरी एक कार में तेज़ आवाज़ में बज रहे गीत ने उसके दिमाग़ की बत्तियां जला दी। "रूठे रूठे पिया...."

   17
6 Comments

Arman Ansari

26-Dec-2021 06:04 PM

Bajai me sr ap ki kahani ka koi jawab nhi

Reply

Ajay

26-Dec-2021 06:25 PM

अंसारी जी आपकी तारीफ़ के लिए शुक्रिया 💐

Reply

बेहतरीन स्टोरी, हम कल ही पढ़ लिए थे पार्ट आलिया जी से लिंक लेकर। लेकिन कमेंट अब कर रहे हैं।नोटिफिकेशन की वजह से पता चलता नही है, समय निकाल कर जैसे तैसे आ पाते हैं। वेट मुश्किल होता स्टोरी का। कहानी अच्छी जा रही है बहुत।

Reply

Ajay

26-Dec-2021 03:56 AM

बिल्कुल आपकी मांग पूरी करने की कोशिश रहेगी।🙏🏻

Reply

Shaqeel

24-Dec-2021 02:28 PM

Bahut behtren

Reply

Ajay

24-Dec-2021 02:44 PM

Thanks 🙏🏻🙏🏻 keep reading.

Reply